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विरह और मिलन

विरह और मिलन

वाह प्रभु जी वाह
बनाया है तूने ऐसा क्यों इंसान
कालचक्र की पहिया में
जीवन भर घुम रहा है इंसान।
चाहे व्यक्ति ज्ञानी हो
चाहे व्यक्ति वैरागी हो
विरह और मिलन ऐसी माया छाया है
जिसका सब खेल है निराला।
कोई करें चाहे लाख चतुराई
अपना सोचा हमेशा पूरा नही होता है भाई
कभी कभी तू इतना क्यों इतराता है
जब हंसती है तुम्हारी भाग्य की रेखा
विरह और मिलन ऐसी माया छाया है
जैसे आग बनी सावन की बरखा।
दिल को कौन संभाले
आशा और निराशा के दो रंगो से
नागन बन जाती है रात सुहानी
विरह और मिलन ऐसी माया छाया है।
आज हम जीवन कैसे गुजारें
विरह और मिलन का है सबसे नाता
 श्री राम और सीता मैय्या का जीवन गाथा देखों
उनका विरह और मिलन इतिहास गवाह है
विरह और मिलन ऐसी माया छाया है
कभी हंसता है तो कभी रोता है
 घर का कोना कोना।

नूतन लाल साहू

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3 Comments

Anjali korde

21-Jul-2023 04:29 PM

Fantastic

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Gunjan Kamal

24-Jun-2023 11:51 PM

👏👌

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